शहर के बाहरी हिस्से में एक पुराना घर था — टेढ़ी दीवारें, टूटी खिड़कियाँ, और दरवाज़े जिनसे सड़ांध जैसी बदबू आती थी। लोग उसे “ब्लैकहोल हाउस” कहते थे, क्योंकि उसमें जाने वाला कोई लौटता नहीं था। पर 31 अक्टूबर की रात, जब हैलोवीन की गूंज सड़कों पर थी, चार दोस्तों ने अपनी किस्मत उस दरवाज़े से बाँध दी।
राघव, नेहा, तन्वी और कबीर — सभी हँसते हुए घर में घुसे। हवा में ठंडक नहीं, एक अजीब पसीने जैसी चिपचिपाहट थी। दरवाज़ा अपने पीछे अपने आप बंद हो गया — “धम्म!” आवाज़ जैसे किसी मकान की सांस टूट गई हो। नेहा ने तुरंत कहा, “य…यह आवाज़ हवा की नहीं थी।” जवाब में बस एक सीलन भरी दीवार ने कर्र-कर्र की आवाज़ में हँसा।
एक कमरे में धूल से ढकी मेज़ पर एक सड़ा हुआ कद्दू रखा था। उसके अंदर नीली लौ जल रही थी — लेकिन बिना आग के! कबीर ने झुककर देखा ही था कि कद्दू की आँखें पल भर में खुल गईं। वो उन्हें देख रहा था। फिर एक खुरदुरी आवाज़ गूँजी — “क्यों आए हो मेरे घर में?”
कमरे का दरवाज़ा बंद हो गया। बाहर कुछ चलने की आवाज़ें आने लगीं — जैसे किसी की जंजीर ज़मीन पर घिसट रही हो। राघव ने टॉर्च निकाली, पर रोशनी नहीं जली। अचानक पीछे से हवा का झोंका आया और किसी ने उसकी गर्दन पकड़ ली। “माफ करना, ये घर तेरे लिए नहीं,” वह फटी हुई आवाज़ बोली।
नेहा ने चिल्ला कर राघव को खींचा — पर उसका चेहरा राख हो चुका था, आँखें खुली, शरीर स्थिर। तन्वी रो पड़ी, पर उसकी चीख अधूरी रह गई क्योंकि दीवार से एक लटकता हाथ बाहर आया और उसकी गर्दन जकड़ ली। वह छटपटाई, मगर अगले ही सेकंड गायब हो गई।
अब बस दो बचे थे — नेहा और कबीर। वे भागे, सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे, लेकिन नीचे ज़मीन नहीं थी — सिर्फ अंधेरा था, गहराई जिसमें नीली अग्नि उबल रही थी। दीवारों पर सूखे खून से लिखा था — “जो हैलोवीन की रात आए, उसका शरीर हमारा और आत्मा तुम्हारा।”
कबीर चीखा और दरवाज़े की ओर भागा, लेकिन दरवाज़ा अब लकड़ी का नहीं — माँस का हो चुका था। उसने उसे धक्का मारा, तो उसमें से खून रिसने लगा। पूरा घर कराह उठा। किसी ने उसके कान में फुसफुसाया — “तुम अब इस घर का हिस्सा हो…”
नेहा ने प्रार्थना की और अपनी कमर पर बंधी चाकू से आत्मरक्षा की कोशिश की, लेकिन दीवारों से निकले हाथों ने उसका गला घोंट दिया। उसकी चीख हवा में घुल गई।
सुबह लोग आए तो घर फिर शांत था। कोई निशान नहीं, कोई शरीर नहीं। बस मेज़ पर वही नीली लौ वाला कद्दू रखा था — पर अब उसकी मुस्कान और चौड़ी थी… और उसके अंदर चार साये घूम रहे थे।
कहते हैं, अब हर हैलोवीन की रात वो कद्दू फिर जलता है, और घर से हँसी की आवाज़ आती है — ऐसी जो इंसान की नहीं लगती। जो भी उस हँसी को सुनता है, उसकी आँखें धीरे-धीरे नीली होने लगती हैं।
किसी ने आज तक उस घर की ओर जाने की हिम्मत नहीं की — क्योंकि जिसने भी कोशिश की, उसने खुद की हँसी किसी और के मुँह से सुनी है।







